Wednesday, September 18, 2019

अभिलाषा




समझ ना पायी उनकी आँखे जब मेरे नयनों की भाषा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा

लाख चाहने पर भी अपनी भवुकता हम छोड़ ना पाये
लेकिन मर्यादा के बन्धन भी हम किँचित तोड़ ना पाये

आशा के परिधान पहनकर हमसे मिलती कही निराशा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा

वे है निकट हमारे फिर भी - लगता कोसो की दूरी हैं
मिलने पर कुछ ना कह सके हम, ये भी कैसी मज़बूरी है

कर्तव्य विभूर विवश मै खड़ी बन एक तमाशा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा

निर्णय के सरसिज मुरझाये गुमसुम सा उर का सरवर है
दीपशिखा सम्मुख है फिर भी अंतर्मन गहन तमस है

जन्मान्तर से समेट रखा है अंतःकरण में गहरा कुसहा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा



काश मैं गुलाब बन पाती





नज़ाकत से भी नाजुक कहलाती 
पर कांटों को भी साथ बसाती 

भोरों के मदहोश गुँजन में 
नया कोई गीत गुनगुनाती 

मन्द हवा के झोंकों में 
यूँ ही इठलाती 

ओस के नन्हें मोती से 
अपना सिंगार करती 

कभी दूसरो के दुःख मै 
यूँ ही खुद को बैचेन पाती 

कांटों से भी घिर कर 
उस गुल सी सदा मुस्कुराती 

काश मैं गुलाब बन पाती .............

Sunday, June 30, 2019

तन्हाई





जब दोपहर को
समुन्द्र की लहरें ,
मेरे हृदय की धड़कनों के ,
समरस हो कर उठती हैं।

तो सूरज की प्राणदायनी किरणों से ,
मुझे ,
तेरी जुदाई
बर्दाश्त करने की
शक्ति मिलती है।

Friday, June 28, 2019

काश




मै रूट जाती तो मानते तुम ,
कभी यूँ भी साथ निभाते तुम। 

जिन्दगी के गणित में उलछ गए थे जब हम ,
तब मेरा विश्वास जागते तुम।

ना जाने कितना कुछ था  कहने को,
काश बिना शब्दों के समझ पाते तुम। 

आपने ही अंधेरो में गुम हो गयी हूँ मै ,
कभी तो अहसासों के गर्त में जाते तुम। 

हार गयी थी मै लड़ते लड़ते अकेले ज़माने से ,
एक बार तो मेरा हौसला बढ़ाते तुम। 

सही गलत की समझ थी मुझको भी ,
पर कभी तो बेपरवाह सा पल विताते तुम। 

जानती हु सब परियों की कहानियाँ है झूटी ,
पर कभी तो राक्षस की कैद से छुड़वाते तुम। 

आम लोगो सी आम जिंदगानी हमारी ,
पर कभी तो खास महसूस करते तुम। 

सपनो की दुनियाँ में ले जाते तुम ,
कभी मुझको भी समझ पाते तुम।