समझ ना पायी उनकी आँखे जब मेरे नयनों की भाषा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा
लाख चाहने पर भी अपनी भवुकता हम छोड़ ना पाये
लेकिन मर्यादा के बन्धन भी हम किँचित तोड़ ना पाये
आशा के परिधान पहनकर हमसे मिलती कही निराशा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा
वे है निकट हमारे फिर भी - लगता कोसो की दूरी हैं
मिलने पर कुछ ना कह सके हम, ये भी कैसी मज़बूरी है
कर्तव्य विभूर विवश मै खड़ी बन एक तमाशा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा
निर्णय के सरसिज मुरझाये गुमसुम सा उर का सरवर है
दीपशिखा सम्मुख है फिर भी अंतर्मन गहन तमस है
जन्मान्तर से समेट रखा है अंतःकरण में गहरा कुसहा
इसीलिये शायद अधूरी है मेरे अंतस की अभिलाषा